Friday, 4 June 2021

 

महात्मा ज्योतिबा फुले चिंतन

 महात्मा ज्योतिबा फुले चिंतन ई-पत्रिका के अंक को निचे दिए गए लिंक से डाउलोड करें

1- अंक प्रथम :- मार्च- 2021

२- माली समाज व्यवसाय सम्पर्क पुस्तिका देखने के लिए क्लिक  में पंजीकरण हेतु क्लिक करें l

    PDF डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें 



 आप अपना व्यवसाय, कार्य   एवं समाज सेवा कार्य समाज के प्रत्येक  व्यक्ति तक पहुचने के लिए अपने व्यवसाय का विवरण अपडेट करें.

अपने विचार, बाल कविता, चित्र एवं अपने विशेष योग्यता का प्रकाशन ई पत्रिका में करवाने के लिए प्रकाशन मेल आई डी msbpssojat@gmail.com पर भिजवाए l

Saturday, 10 April 2021

महात्मा ज्योतिबा फुले जयंति के अवसर पर महात्मा ज्योतिबा फुले चिंतन ई पत्रिका का विमोचन

 महात्मा ज्योतिबा फुले जयंति के अवसर पर महात्मा ज्योतिबा फुले चिंतन ई पत्रिका का विमोचन समस्त माली समाज भवन में आयोजित जयंति समारोह में किया गया l



Sunday, 19 August 2018

डॉ पद पर चयनित होने पर सम्मान

माली समाज के गौरव श्री नंद किशोर परिहार का डॉक्टर पद पर चयन होकर राजकीय चिकित्सालय चाड़वास में पदस्थापित होने पर  माली सैनी कर्मचारी कल्याण संस्था के पदाधिकारियों, सदस्यो एवं बहुप्रतियोगी संस्थान के प्रतियोगियों द्वारा माली समाज बहुप्रतियोगी संस्थान में बहुमान किया गया। डॉ साहेब द्वारा छात्र छात्राओं को जीवन में उद्देस्य लेकर मेहनत करने पर सफलता अवश्य होते है का संदेश दिया। साथ ही समाज के प्रतिभा के धनी श्री हजारी जी सैनी प्राचार्य चाड़वास द्वारा प्रतियोगियों को उचित सहायक सामग्री का चयन मार्गदर्शक टीम के द्वारा कर अध्ययन को सफलता का मूल मंत्र बताया।



Friday, 18 May 2018

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी हेतु एक छोटा सा मार्गदर्शन

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कैसे करे ( How to Preparation Competitive Exams )

जो साथी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे है। उनके मन मे अनेक सवाल है।

सवाल कुछ तरह से होते है।

मैं किसकी तैयारी करूँ?

मुझे क्या पढ़ना चाहिए। परीक्षा में सफल होने के लिए

कौनसी पुस्तकें पढ़नी चाहिए। किसकी की गाइड खरीदूँया फिर कहते है क्या कोचिंग करना जरूरी है

कितने घंटे पढ़ना चाहिए

इन सभी का उत्तर इस प्रकार हैं

1.मैं किसकी तैयारी करूँ?
इस सवाल का उत्तर ख़ुद से पूछना चाहिए। क्योंकि आप अपनी रूचि,क्षमता ,विषय की जानकारी को ख़ुद बेहतर समझते हो। कोई दूसरा इसका उत्तर नही दे पायेगा क्योंकि उनको आपको बारे में नही पता है। इसलिए आप खुद एक लक्ष्य बना लीजिए। अगल-अलग एग्जाम की तैयारी करने की बजाय एक भर्ती की तैयारी कीजिए ,आपको निश्चित तौर से सफलता मिलेगी।

Q.2.कौनसी गाइड ख़रीदनी चाहिए?या मुझे कौनसी पुस्तक पढ़नी चाहिए ?
 दोस्तो,आज के समय में बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है।इसका फायदा गाइड व्यवसायी नें उठाया है।बाज़ारीकरण के दौर में परीक्षार्थी ठगा जा रहा है।हालाँकि कुछ गाइड ठीक है। लेकिन मात्र गाइड सफल होने लिए काफी नही है। इसलिए मेरी सलाह यहीं है कि आप सिलेबस के अनुसार मूल और प्रामाणिक पुस्तकें का अध्ययन कीजिए। अब प्रश्न यह बन गया पुस्तकों का चुनाव कैसे करें -इसका सामान्य सा उत्तर है आप विषय-विशेषज्ञों से सलाह ले या उस क्षेत्र में सफ़ल और अनुभवी परीक्षार्थी से सलाह लेकर चुनाव करें।
एक बात ध्यान रखना कि आज का जमाना कैसा है आप सब जानते हो फ़ालतू की सलाह देने वालों से बचें और स्वयं का विवेक इस्तेमाल करें।

Q.3. क्या कोचिंग करना ज़रूरी हैं ओर सेल्फ स्टडी सफ़लता में कितनी कारगर हैं?
 दोस्तो,मंजिल आपको की तय करनी पड़ेगी तो उस तक पहुँचने के लिए रास्तें भी ख़ुद ही बनाने पड़ेंगे। बस स्व-अध्ययन सबसे कारगर है। इतना सा कहना है अगर कोचिंग करनी है बस अच्छे टीचर से ही पढ़ें। जो आपको मोटीवेट करे और विषय पर पूरी पकड़ हो।

Q.4- कितने घंटे स्टडी करनी चाहिए?क्या सुबह जल्दी उठकर पढ़ने से ज़्यादा याद होता है?
मानव की स्मृति कोई डेटा फीड करने की मशीन नही है।इसलिए व्यक्ति किसी क्षमता और रूचि के अनुसार योजनाबद्ध तरीके से 6 से 8 आठ तक स्टडी कर लीजिए। लेकिन इस कार्य में नियमितता होना अति आवश्यक है।पढ़ने का कोई समय और स्थान नही होता है।आप कभी और कहीं भी पढ़ सकते हो। बस आपको स्टडी में डिस्टर्ब नही होना चाहिए। रेलयात्रा में चलते-चलते पढ़ो। या रूम में बंद होकर पढो। सुबह पढो या रात में पढ़ो लेकिन एकाग्रता के साथ अध्ययन करो।शौक से पढ़ो। जैसे खाना खाने से भूख मिटती है पानी पीने से प्यास बुझती है।इसी तरह स्टडी करने से भी अपनी जिज्ञासा को शान्त होती है।

अंतिम बात “पढ़ना एक निज़ी आदत है। अगर आप कॉम्पटीशन की तैयारी कर रहे हो तो कभी निराश मत होना।

आस पर विश्वास में ही श्वास हैं!

-यदि कोई इंसान सोने का चम्मच लेकर पैदा होता हैं और सारी सुविधाएँ तथा परिस्थितियाँ उसे अनुकूल मिली हों तब वह कामयाब होकर दिखाता हैं तो उसे कामयाबी काम सुकून हमेशा उस कामयाब व्यक्ति से कम नहीं रहेगा; जिसे लकङी का भी चम्मच भी नसीब नहीं हुआ हो और जिसने जीवन के हर मोड़ पर संघर्ष करके ही कामयाबी पाई हो।

हमेशा सकरात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढे

Best of luck

प्रेम परिहार वरिष्ठ अध्यापक
मंत्री माली सैनी कर्मचारी कल्याण संस्था सोजत

Sunday, 13 May 2018

DySp द्वारा मार्गदर्शन एवं सदस्यों द्वारा सम्मान

माली समाज बहु प्रतियोगी संस्थान सोजत   में प्रथम बार DySP श्रीमान सुरेश जी सांखला के पधारने पर सनसथान के पदाधिकारियों द्वारा सम्मान किया गया एवं श्रीमान सुरेश जी सांखला द्वारा बच्चों को मार्गदर्शन देते हुए कहा की जीवन में सफल होना कोई मुश्किल काम नहीं है और सफल होने के लिए कड़ी मेहनत के साथ ही हमें लगन  एवं उद्देश्य को लेकर तैयारी करने पर हमें सफलता अवश्य मिलती हैl







Thursday, 12 April 2018

महात्मा ज्योति बा फुले जयंती समारोह

महात्मा ज्योति बा फुले जयंती समारोह की शोभा यात्रा एवं जलाश धूमधाम से सोजत सहर में मनाया गया जिसमे बालिका शिक्षा एवं बाल विवाह पर झांकी परद्शन एवं बंद बाजा के शाथ शानदार जुलाशका आयोजन किया गया जिसका एक द्रश्य इस प्रकार है l





Friday, 6 April 2018

महात्मा ज्योतिबा फूले जीवन परिचय




माली समाज बहु प्रतियोगी संस्थान सोजत

महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले

Mahatma Jyotiba Phule Biography in Hindi

Mahatma Jyotiba Phule Life History in Hindi

महात्मा ज्योतिबा फुले की जीवनी 

विद्या बिना मति गयी, मति बिना नीति गयी |
नीति बिना गति गयी, गति बिना वित्त गया |
वित्त बिना शूद गये, इतने अनर्थ, एक अविद्या ने किये ||
                                                                                                                                        – ज्योतिबा फुले
Mahatma Jyotiba Phule Life History in Hindi
Mahatma Jyotiba Phule
महात्मा ज्योतिबा फुले (ज्योतिराव गोविंदराव फुले) को 19वी. सदी का प्रमुख समाज सेवक माना जाता है. उन्होंने भारतीय समाज में फैली अनेक कुरूतियों को दूर करने के लिए सतत संघर्ष किया. अछुतोद्वार, नारी-शिक्षा, विधवा – विवाह और किसानो के हित के लिए ज्योतिबा ने उल्लेखनीय कार्य किया है.
उनका जन्म 11 अप्रैल  1827  को सतारा महाराष्ट्र , में हुआ था. उनका परिवार बेहद गरीब था और जीवन-यापन के लिए बाग़-बगीचों में माली का काम करता था. ज्योतिबा जब मात्र  एक वर्ष के थे तभी उनकी माता का निधन हो गया था. ज्योतिबा का लालन – पालन सगुनाबाई नामक एक दाई ने किया. सगुनाबाई ने ही उन्हें माँ की ममता और दुलार दिया.
7 वर्ष की आयु में ज्योतिबा को गांव के स्कूल में पढ़ने भेजा गया. जातिगत भेद-भाव के कारण उन्हें विद्यालय छोड़ना पड़ा. स्कूल छोड़ने के बाद भी उनमे पढ़ने की ललक बनी रही. सगुनाबाई ने बालक ज्योतिबा को घर में ही पढ़ने में मदद की. घरेलु कार्यो के बाद जो समय बचता उसमे वह किताबें पढ़ते थे. ज्योतिबा  पास-पड़ोस के बुजुर्गो से विभिन्न विषयों में चर्चा करते थे. लोग उनकी सूक्ष्म और तर्क संगत बातों से बहुत प्रभावित होते थे.
अरबी-फ़ारसी के विद्वान गफ्फार बेग मुंशी एवं फादर लिजीट साहब ज्योतिबा के पड़ोसी थे. उन्होंने बालक ज्योतिबा की प्रतिभा एवं शिक्षा के प्रति  रुचि  देखकर उन्हें पुनः विद्यालय भेजने का प्रयास किया. ज्योतिबा फिर से स्कूल जाने लगे. वह स्कूल में सदा प्रथम आते रहे. धर्म पर टीका – टिप्पणी सुनने पर उनके अन्दर जिज्ञासा हुई कि हिन्दू धर्म में इतनी विषमता क्यों है? जाति-भेद और वर्ण व्यवस्था क्या है? वह अपने मित्र सदाशिव बल्लाल गोंडवे के साथ समाज, धर्म और देश के बारे में चिंतन किया करते.
उन्हें इस प्रश्न का उत्तर नहीं सूझता कि – इतना बड़ा देश गुलाम क्यों है? गुलामी से उन्हें नफरत होती थी. उन्होंने महसूस किया कि जातियों और पंथो पर बंटे इस देश का सुधार तभी संभव है जब लोगो की मानसिकता में सुधार होगा. उस समय समाज में वर्गभेद अपनी चरम सीमा पर था. स्त्री और दलित वर्ग की दशा अच्छी नहीं थी. उन्हें शिक्षा से वंचित रखा जाता था. ज्योतिबा को इस स्थिति पर बड़ा दुःख होता था. उन्होंने स्त्री सुर दलितों की शिक्षा के लिए सामाजिक संघर्ष का बीड़ा उठाया. उनका मानना था कि – माताएँ जो संस्कार बच्चो पर डालती हैं, उसी में उन बच्चो के भविष्य के बीज होते है. इसलिए लडकियों को शिक्षित करना आवश्यक है.
उन्होंने निश्चय किया कि वह वंचित वर्ग की शिक्षा के लिए स्कूलों का प्रबंध करेंगे. उस समय जात-पात, ऊँच-नीच की दीवारे बहुत ऊँची थी. दलितों एवं स्त्रियों की शिक्षा के रास्ते बंद थे. ज्योतिबा इस व्यवस्था को तोड़ने हेतु दलितों और लड़कियों को अपने घर में पढ़ाते थे. वह बच्चो को छिपाकर लाते और वापस पहुंचाते थे. जैसे – जैसे उनके समर्थक बढ़े उन्होंने खुलेआम स्कूल चलाना प्रारंभ कर दिया.

ज़रूर पढ़ें :भारत की प्रथम शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की प्रेरणादायक जीवनी

Savitri Phule Mahtma Jyotiba Phule Wife
Savitri Phule
स्कूल प्रारम्भ करने के बाद ज्योतिबा को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. उनके विद्यालय में पढ़ाने को कोई तैयार न होता. कोई पढ़ाता भी तो सामाजिक  दवाब में उसे जल्दी ही यह कार्य बंद करना पड़ता. इन स्कूलों में पढ़ायें कौन ? यह एक गंभीर समस्या थी. ज्योतिबा ने इस समस्या के हल हेतु अपनी पत्नी सावित्री को पढ़ना सिखाया और फिर मिशनरीज के नार्मल स्कूल में प्रशिक्षण दिलाया. प्रशिक्षण के बाद वह भारत की प्रथम प्रशिक्षित महिला शिक्षिका बनीं.
उनके इस कार्य से समाज के लोग कुपित हो उठे. जब सावित्री बाई स्कूल जाती तो लोग उनको तरह-तरह से अपमानित करते. परन्तु वह महिला अपमान का घूँट पीकर भी अपना कार्य करती रही. इस पर लोगो ने ज्योतिबा को समाज से बहिष्कृत करने की धमकी दी और उन्हें उनके पिता के घर से बाहर निकलवा दिया.
गृह त्याग के बाद पति-पत्नी को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. परन्तु वह अपने लक्ष्य से डिगे नहीं. अँधेरी काली रात थी. बिजली चमक रही थी. महात्मा ज्योतिबा को घर लौटने में देर हो गई थी. वह सरपट घर की ओर बढ़े जा रहे थे. बिजली चमकी उन्होंने देखा आगे रास्ते में दो व्यक्ति हाथ में चमचमाती तलवारें लिए जा रहे है. वह अपनी चाल तेज कर उनके समीप पहुंचे. महात्मा ज्योतिबा ने उनसे उनका परिचय व इतनी रात में चलने का कारण जानना चाहा. उन्होने बताया हम ज्योतिबा को मारने जा रहे है.
महात्मा ज्योतिबा ने कहा – उन्हें मार कर तुम्हे क्या मिलेगा ? उन्होंने कहा – पैसा मिलेगा, हमें पैसे की आवश्यकता है. महात्मा ज्योतिबा ने क्षण भर सोचा फिर  कहा- मुझे मारो, मैं ही ज्योतिबा हूँ, मुझे मारने से अगर तुम्हारा हित होता है, तो मुझे ख़ुशी होगी. इतना सुनते ही उनकी तलवारें हाथ से छूट गई. वह ज्योतिबा के चरणों में गिर पड़े, और उनके शिष्य बन गए.
महात्मा ज्योतिबा फुले ने ”सत्य शोधक समाज” नामक संगठन की स्थापना की. सत्य शोधक समाज उस समय के अन्य संगठनो से अपने सिद्धांतो व कार्यक्रमो  के कारण भिन्न था. सत्य शोधक समाज पूरे महाराष्ट्र में शीघ्र ही फ़ैल गया. सत्य शोधक समाज के लोगो ने जगह – जगह दलितों और लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूल खोले. छूआ-छूत का विरोध किया. किसानों के हितों की रक्षा के लिए आन्दोलन चलाया.
अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं-
  1. तृतीय रत्न,
  2. छत्रपति शिवाजी,
  3. राजा भोसला का पखड़ा,
  4. ब्राह्मणों का चातुर्य,
  5. किसान का कोड़ा,
  6. अछूतों की कैफियत.
महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया. धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने हेतु उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखी. 28 नवम्बर सन 1890 को उनका देहावसान हो गया.
बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर महात्मा ज्योतिबा फुले के आदर्शों से बहुत प्रभवित थे और उन्होंने कहा था –
Mahatma Phule the greatest Shudra of modern India who made the lower classes of Hindus conscious of their slavery to the higher classes who preached the gospel that for India social democracy was more vital than independence from foreign rule.
महात्मा फुले मॉडर्न इंडिया के सबसे महान शूद्र थे जिन्होंने पिछड़ी जाति के हिन्दुओं को अगड़ी जातिके हिन्दुओं का गुलाम होने के प्रति जागरूक कराया, जिन्होंने यह शिक्षा दी कि भारत के लिए विदेशी हुकूमत से स्वतंत्रता की तुलना में सामाजिक लोकतंत्र  कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है.
पूरे जीवन भर गरीबों, दलितों और महिलाओ के लिए संघर्ष करने वाले इस सच्चे नेता को जनता ने आदर से ‘महात्मा’ की पदवी से विभूषित किया. उन्हें समाज के सशक्त प्रहरी के रूप में सदैव याद किया जाता रहेगा।
जय महात्मा ज्योतिबा फुले। जय सावत्री बाई फुले।
जय माली समाज।

सारांश संग्रहित by
प्रेम चंद परिहार
व. अ. गणित
पता बेरा गोरवा सोजत सिटी